आर्य शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ और प्रगतिशील। अतः Aryasamaj का अर्थ हुआ श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज, जो वेदों के अनुकूल चलने का प्रयास करते हैं। दूसरों को उस पर चलने को प्रेरित करते हैं।
आर्यसमाजियों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम और योगीराज कृष्ण हैं। महर्षि दयानंद ने उसी वेद मत को फिर से स्थापित करने के लिए आर्य समाज की नींव रखी। आर्य समाज के सब सिद्धांत और नियम वेदों पर आधारित हैं। Aryasamaj की मान्यताओं के अनुसार फलित ज्योतिष, जादू-टोना, जन्मपत्री, श्राद्ध, तर्पण, व्रत, भूत-प्रेत, देवी जागरण, मूर्ति पूजा,तीर्थ यात्रा,पाषाण पूजा,पशुबलि आदि मान्यताऐं मनगढ़ंत हैं, वेद विरुद्ध हैं। आर्य समाज सच्चे ईश्वर की पूजा करने को कहता है, ईश्वर आकाश की तरह सर्वव्यापी है, वह अवतार नहीं लेता, वह सब मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल देता है, अगला जन्म देता है, उसका ध्यान घर में किसी भी एकांत स्थान पर बैठ कर हो सकता है।
वेदों के अनुसार दैनिक यज्ञ करना हर आर्य का कर्त्तव्य है। सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। अन्य माननीय ग्रंथ हैं – वेद, उपनिषद, षड् दर्शन, गीता व वाल्मीकि रामायण इत्यादि। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में इन सबका सार दे दिया है। १८-१८ घंटे समाधि में रहने वाले योगीराज दयानंद ने लगभग तीन हजार आर्ष अनार्ष ग्रन्थों का मंथन कर अद्भुत और क्रांतिकारी सत्यार्थप्रकाश की रचना की। ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कार विधि,गौकरुणानिधि आदि उनके और भी कई प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं |
मान्यताएं-
१.ईश्वर का सर्वोत्तम और निज नाम ओ३म् है। उसमें अनंत गुण होने के कारण उसके ब्रह्मा, महेश, विष्णु, गणेश, देवी, अग्नि, शनि वगैरह अनंत नाम हैं। इनकी अलग- अलग नामों से मूर्ति पूजा ठीक नहीं है। Aryasamaj आर्य समाज वर्णव्यवस्था यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र को कर्म से मानता है, जन्म से नहीं। आर्य समाज स्वदेशी, स्वभाषा, स्वसंस्कृति और स्वधर्म का पोषाक है।
२. आर्य समाज वसुधैव कुटुंबकम् को मानता है। लेकिन भूमंडलीकरण को देश, समाज और संस्कृति के लिए घातक मानता है। आर्य समाज वैदिक समाज रचना के निर्माण व आर्य चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने के लिए प्रयासरत है। इस समाज में मांस, अंडे, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि का प्रयोग वर्जित है |
नियम-
१. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।
२. ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।
३. वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
४. सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोडने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।
५. सब काम धर्मानुसार, अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें।
६. संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
७. सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये।
८. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।
९. प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये।
१०. सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम पालने सब स्वतंत्र रहें
(5) संसार में आर्य समाज Aryasamaj एकमात्र ऐसा संगठन है जिसके द्वारा धर्म, समाज, और राष्ट्र तीनों के लिए अभूतपूर्व कार्य किए गए हैं, इनमे से कुछ इस प्रकार है-
Arya Samaj
१- वेदों से परिचय – वेदों के संबंध में यह कहा जाता था कि वेद तो लुत्प हो गए, पाताल में चले गए। किन्तु महर्षि दयानन्द के प्रयास से पुनः वेदों का परिचय समाज को हुआ और आर्य समाज ने उसे देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी पहुँचाने का कार्य किया। आज अनेक देशों में वेदो ऋचाएँ गूंज रही हैं, हजारों विद्वान आर्य समाज के माध्यम से विदेश गए और वे प्रचार कार्य कर रहे हैं।
२- सबको पढ़ने का अधिकार – वेद के संबंध में एक और प्रतिबंध था। वेद स्त्री और शूद्र को पढ़ने, सुनने का अधिकार नहीं था। किन्तु आज आर्य समाज के प्रयास से हजारों महिलाओं ने वेद पढ़कर ज्ञान प्रपट किया और वे वेद कि विद्वान हैं। इसी प्रकार आज बिना किसी जाति भेद के कोई भी वेद पढ़ और सुन सकता है। यह आर्य समाज का ही देंन है।
३- जातिवाद का अन्त – आर्य समाज जन्म से जाति को नहीं मानता। समस्त मानव एक ही जाति के हैं। गुण कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था को आर्य समाज मानता है। इसीलिए निम्न परिवारों में जन्म लेने वाले अनेक व्यक्ति भी आज गुरुकुलों में अध्यन कर रहे हैं। अनेक व्यक्ति शिक्षा के पश्चात आचार्य शास्त्री, पण्डित बनकर प्रचार कर रहे हैं। हम सब आर्य है, आर्य पुत्र है और आर्यावर्त देश के नागरिक है यह उद्दघोष आर्य समाज ने ही पुनः सबको दिया।
४- स्त्री शिक्षा – स्त्री को शिक्षा का अधिकार नहीं है, ऐसी मान्यता प्रचलित थी। महर्षि दयानन्द ने इसका खण्डन किया और सबसे पहला कन्या विद्यालय आर्य समाज की ओर से प्रारम्भ किया गया। आज अनेक कन्या गुरुकुल आर्य समाज के द्वारा संचालित किए जा रहे हैं।
५- विधवा विवाह – महर्षि दयानन्द के पूर्व विधवा समाज के लिए एक अपशगून समझी जाति थी। सतीप्रथा इसी का एक कारण था। आर्य समाज ने इस कुरीति का विरोध किया तथा विधवा विवाह को मान्यता दिलवाने का प्रयास किया।
६- छुआछूत का विरोध – आर्य समाज Aryasamaj ने सबसे पहले जातिगत ऊँचनीच के भेदभाव को तोड़ने की पहल की। इस आधार पर बाद में कानून बनाया गया। अछूतोद्धार के सम्बन्ध में आर्य सन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द ने अमृतसर काँग्रेस अधिवेशन में सबसे पहले यह प्रस्ताव रखा था जो पारित हुआ था।
७- देश की स्वतन्त्रता में योगदान – परतंत्र भारत को आजाद कराने में महर्षि दयानन्द को प्रथम पुरोधा कहा गया। सन् 1857 के समय से ही महर्षि ने अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध जनजागरण प्रारम्भ कर दिया था। सन् 1870 में लाहौर में विदेशी कपड़ो की होली जलाई। स्टाम्प ड्यूटी व नमक के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा परिणाम स्वरूप Aryasamaj आर्यसमाज के अनेक कार्यकर्ता व नेता स्वतन्त्रता संग्राम में देश को आजाद करवाने के लिए कूद पड़े। स्वतन्त्रता आंदोलनकारियों के सर्वेक्षण के अनुसार स्वतन्त्रता के लिए 80 प्रतिशत व्यक्ति आर्यसमाज के माध्यम से आए थे। इसी बात को काँग्रेस के इतिहासकार डॉ॰ पट्टाभि सीतारमैया ने भी लिखी है। लाला लाजपतराय, पं॰ रामप्रसाद बिस्मिल, शहीदे आजम भगत सिंह, श्यामजी कृष्ण वर्मा, मदनलाल ढींगरा, वीर सावरकर, महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले आदि बहुत से नाम हैं।
८- गुरुकुल – सनातन धर्म की शिक्षा व संस्कृति के ज्ञान केंद्र गुरुकुल थे, प्रायः गुरुकुल परम्परा लुप्त हो चुकी थी। Aryasamaj आर्य समाज ने पुनः उसे प्रारम्भ किया। आज सैकड़ों गुरुकुल देश व विदेश में हैं।
९- गौरक्षा अभियान – ब्रिटिश सरकार के समय में ही महर्षि दयानन्द ने गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित करने व गोवध पर पाबन्दी लगाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया था। गौ करुणा निधि नामक पुस्तक लिखकर गौवंश के महत्व को बताया और गाय के अनेक लाभों को दर्शाया। महर्षि दयानन्द गौरक्षा को एक अत्यंत उपयोगी और राष्ट्र के लिए लाभदायक पशु मानकर उसकी रक्षा का सन्देश दिया। ब्रिटिश राज के उच्च अधिकारियों से चर्चा की, 3 करोड़ व्यक्तियों के हस्ताक्षर गौवध के विरोध में करवाने का का कार्य प्रारम्भ किया,। गौ हत्या के विरोध में कई आन्दोलन आर्य समाज ने किए। आज गौ रक्षा हेतु लाखो गायों का पालन आर्य समाज द्वारा संचालित गौशालाओं में हो रहा है।
१०- हिन्दी को प्रोत्साहन – महर्षि दयानन्द सरस्वती ने राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिए एक भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किया। उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है अहिन्दी भाषी प्रदेशों या विदेशों में जहाँ-जहाँ आर्य समाज हैं वहाँ हिन्दी का प्रचार है।
११- यज्ञ – सनातन धर्म में यज्ञ को बहुत महत्व दिया है। जीतने शुभ कर्म होते हैं उनमे यज्ञ अवश्य किया जाता है। यज्ञ शुद्ध पवित्र सामाग्री व वेद के मन्त्र बोलकर करने का विधान है। किन्तु यज्ञ का स्वरूप बिगाड़ दिया गया था। यज्ञ में हिंसा हो रही थी। बलि दी जाने लगी थी। वेद मंत्रो के स्थान पर दोहे और श्लोकों से यज्ञ किया जाता था। यज्ञ का महत्व भूल चुके थे। ऐसी स्थिति में यज्ञ के सनातन स्वरूप को पुनः आर्य समाज ने स्थापित किया, जन-जन तक उसका प्रचार किया और लाखों व्यक्ति नित्य हवन करने लगे। प्रत्येक आर्य समाज Aryasamaj में जिनकी हजारों में संख्या है, सभी में यज्ञ करना आवश्यक है। इस प्रकार यज्ञ के स्वरूप और उसकी सही विधि व लाभों से आर्य समाज ने ही सबको अवगत करवाया।
१२- शुद्धि संस्कार व सनातन धर्म रक्षा – सनातन धर्म से दूर हो गए अनेक हिंदुओं को पुनः शुद्धि कर सनातन धर्म में प्रवेश देने का कार्य आर्य समाज ने ही प्रारम्भ किया। इसी प्रकार अनेक भाई-बहन जो किसी अन्य संप्रदाय में जन्में यदि वे सनातन धर्म में आना चाहते थे, तो कोई व्यवस्था नहीं थी, किन्तु आर्य समाज ने उन्हे शुद्ध कर सनातन धर्म में दीक्षा दी, यह मार्ग आर्य समाज ने ही दिखाया। इससे करोड़ों व्यक्ति आज विधर्मी होने से बचे हैं। सनातन धर्म का प्रहरी आर्य समाज है। जब-जब सनातन धर्म पर कोई आक्षेप लगाए, महापुरुषों पर किसी ने कीचड़ उछाला तो ऐसे लोगों को आर्य समाज ने ही जवाब देकर चुप किया। हैदराबाद निजाम ने सांप्रदायिक कट्टरता के कारण हिन्दू मान्यताओं पर 16 प्रतिबंध लगाए थे जिनमें – धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक रीतिरिवाज सम्मिलित थे। सन् 1937 में पंद्रह हजार से अधिक आर्य व उसके सहयोगी जेल गए तीव्र आंदोलन किया, कई शहीद हो गए। निजाम ने घबराकर सारी पाबन्दियाँ उठा ली, जिन व्यक्तियों ने आर्य समाज के द्वारा चलाये आंदोलन में भाग लिया, कारागार गए उन्हे भारत शासन द्वारा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की भांति सम्मान देकर पेंशन दी जा रही है।
१४- सन् 1983 में दक्षिण भारत मीनाक्षीपुरम में पूरे गाँव को मुस्लिम बना दिया गया था। शिव मंदिर को मस्जिद बना दिया गया था। सम्पूर्ण भारत से आर्यसमाज के द्वारा आंदोलन किया गया और वहाँ जाकर हजारों आर्य समाजियों ने शुद्धि हेतु प्रयास किया और पुनः सनातन धर्म में सभी को दीक्षित किया।
ऐसे अनेक कार्य हैं, जिनमें आर्य समाज सनातन धर्म की रक्षा के लिए आगे आया और संघर्ष किया बलिदान भी दिया।
इस प्रकार आर्य समाज Aryasamaj मानव मात्र की उन्नति करने वाला संगठन है, जिसका उद्देश्य शारीरिक, आत्मिक व सामाजिक उन्नति करना है। वह अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहकर सबकी उन्नति में अपनी उन्नति मानता है।
इसलिए Aryasamaj आर्य समाज जो मानव मात्र की उन्नति के लिए, सनातन संस्कृति के लिए प्रयत्नरत है उसके सहयोगी एवम् सदस्य बनकर इन अद्भुत कार्यों में निःस्वार्थ रूप से सेवा प्रदान करें।
FAQs About Arya Samaj
The first Arya Samaj was founded on 10 April 1875 in Girgaon, Mumbai by Maharishi Dayanand.
Maharishi Dayanand Saraswati is the founder of Arya Samaj.
To benefit the world is the main objective of the Arya Samaj.
Satyarth Prakash is the most famous book of Arya Samaj composed by Maharishi Dayanand.
Arya Samaj branch is in almost every district of India, apart from this, Arya Samaj branch is also available in foreign countries.
The head office of Arya Samaj is located in Delhi which is known as the Sarvadeshik Arya Pratinidhi Sabha.