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Kanyadan कन्यादान शब्द का वास्तविक अर्थ?

यह जो शब्द Kanyadan कन्यादान है, इसका गुणगान बहुत सारे पण्डित बड़े जोर शोर से करते हैं। परन्तु यह बड़ी मजेदार बात है की ‘कन्यादान’ यह शब्द वैदिक और पौराणिक वाङ्मय में कही भी नहीं है। मैं कितने ही विवाह संस्कार करवाते समय यह पूंछता हूँ की क्या ‘कन्यादान‘ होना चाहिए तो लोग बड़े ही जोश के साथ जवाब देते हैं ‘ हाँ जी ‘ बिलकुल होना चाहिए कन्यादान तो महापुण्य या महादान होता है। और इसमें भी अधिकतर महिलाएं ही होती है। परन्तु कुछ सुशिक्षित महिलाएं और पुरुष कहते हैं की नहीं कन्यादान नहीं होना चाहिए।
     यह बात बिलकुल सही है की कन्या का दान नहीं होना चाहिए। क्योकि यदि कन्यादान का विधान है तो वरदान का विधान भी होना चाहिए इस प्रक्रिया को समझने के लिए आपको कन्यादान शब्द का वास्तविक अर्थ को समझना पड़ेगा?
     ज्यादातर लोग जो संस्कृत व्याकरण को नहीं जानते वो इसे सामान्य तौर पर Kanyadan शब्द को ( कन्या + दान ) इस तरह से समझकर अर्थ कर लेते है. इसी लिए इसका जो अर्थ सबसे ज्यादा प्रचलित है हम सर्वप्रथम उसी के बारे में समझते है।
   कन्या का अर्थ तो कन्या है परन्तु क्या आप शास्त्रों में की गई दान की परिभाषा को जानते है। आइये पहले दान शब्द की वास्तविक परिभाषा को समझते है जो शास्त्रों में की गई है।
     जब किसी वस्तु या पदार्थ को दाता के द्वारा दान किया जाता है, तब उस वस्तु या पदार्थ पर से दाता का अधिकार हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। जैसे आपने हमें १०० रूपये दान दिए तो इस राशि को दान देने के बाद आपका अधिकार सर्वदा के लिए समाप्त हो गया। दान उसी वस्तु पदार्थ या संपत्ति का किया जा सकता है जिसे व्यक्ति ने अपने पुरुषार्थ से अर्जित किया हो या कमाया हो। किसी और की धरोहर को दान करने का आपका कोई अधिकार नहीं है।
     क्या माता पिता ने कन्या को अपनी मेहनत से कमाया है? नहीं वह तो परमात्मा की धरोहर है, अमानत है जिसपर आपका लालन पालन और अच्छे संस्कार देकर सुयोग्य करने तक का ही अधिकार है परन्तु दान करने का तो बिलकुल अधिकार नहीं। अब आप ही बताइये आप उस धरोहर का दान कैसे कर सकते है जो आपकी है ही नहीं।


    क्या कन्यादान करने के बाद कन्या पर से कन्या के माता-पिता का अधिकार समाप्त हुआ जब इस पर विचार करते है तो उत्तर आता है नहीं। कन्या को ससुराल में जरा भी कष्ट हो तो माता पिता का कलेजा क्यों मुँह को आ जाता है। दुःख नहीं होना चाहिये। परन्तु ऐसा नहीं है मरते दम तक माता-पिता कन्या से प्रेम वात्सल्य की डोर से बंधे रहते हैं। आखिर यह कैसा दान जिसे करने के बाद भी अधिकार नहीं समाप्त हुआ।
     जो दान देता है वह बड़ा और दान लेने वाला छोटा होता है। तो फिर विवाह में उच्च नीच का भाव उत्पन्न हो गया सामानता की भावना कहां रहा। और जैसे मैंने पहले भी कहा दान केवल स्वअर्जित वस्तु पदार्थ या संपत्ति का हो सकता है और हमारी माताएं बहन बेटियाँ सम्पत्ति नहीं हो सकती।
वस्तुतः कन्यादान शब्द ही नहीं है वास्तविक शब्द है कन्या-आदान है।

वास्तव में कन्यादान शब्द का उच्चारण गलत होने से यह अतार्किक शब्द बन गया है। यह दो शब्दों का समूह है। Kanyadan कन्या + आदान परन्तु इसे सुलभता के लिए कन्यादान बोलते है और इसी से इसके अर्थ का अनार्थ हो जाता है।

यहाँ पर कन्या का दान नहीं अपितु कन्या का आदान किया जाता है। दायित्त्वों का हस्तानांतरण किया जा रहा है जिम्मेदारियों का बटवारा किया जा रहा है। आदान शब्द का अर्थ होता है लेना और इसी शब्द से जुड़ा दूसरा शब्द है प्रदान जिसका अर्थ होता है देना। ध्यान पूर्वक इस प्रक्रिया को देखिये यहाँ आदान प्रदान हो रहा है. आज तक कन्या के एक माता पिता थे परन्तु यहाँ पर दो हो गये. इसी तरह वर के एक माता पिता थे अब उनके पास भी दो हो गए। एक को बेटी मिल रही है तो एक को बेटा। यहाँ किसी की जिम्मेदारियां समाप्त नहीं हो रही है बल्कि बढ़ रही है। अब दोनों माता पिता को दोनों की जिम्मेदारी देखनी पड़ेगी। और यह जिम्मेदारी भी धर्म पूर्वक सत्य पूर्वक और न्याय पूर्वक होकर देखनी पड़ेगी। पंडितजी जो कन्यादान के समय संकल्प पाठ का उच्चारण करते है उसमे दोनों माता पिता एक दूसरे को यही वचन तो देते है।


     परमात्मा ने माता पिता को कन्या रत्न पुत्र रत्न रूपी धरोहर प्रदान किया जिसे माता पिता को पालन पोषण अच्छे संस्कार वस्त्र आभूषण शिक्षण आदि सभी जरूरतों की व्यवस्था कर सुयोग्य बनाना ताकि वह गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी को सुयोग्य तरीके से निभाने के लिए सर्वदा परिपूर्ण रहे। यह एक जिम्मेदारी का आदान प्रदान है किसी संपत्ति का दान नहीं । अतः यह कन्या-आदान है कन्यादान Kanyadan नहीं ।

Writen by- Arya Samaj Pandit ji

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